सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना
वर्मी कंपोस्ट खाद उसे कहते हैं जो कि गोबर, फसल अवशेष आदि को केंचुऔं द्वारा अपना आहार बनाकर मल के रूप में छोड़ा जाता है।यह खाद बेहद पोषक होता है।
इसके अलावा इस खाद में किसी तरह के खरपतवार आदि के बीज भी नहीं रहते। इस खाद में मूल तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के अलावा जरूरी अधिकांश सूक्ष्म पोषक तत्व भी मौजूद रहते हैं।
इस खाद का प्रयोग फसलों में रासायनिक यूरिया आदि उर्वरकों की तरह बुरकाव में करने से भी फसल इसे तत्काल ग्रहण करती है। इसके इतर यदि गोबर की सादी खाद को बुर्का जाए तो फसल में दुष्प्रभाव नजर आ सकता है। खाद का प्रयोग जमीन में आखरी जुताई के समय मिट्टी में मिला कर ज्यादा अच्छा होता है।
केंचुए की मुख्य किस्में
भारत में केंचुए की कई किस्में मिलती है। इनमें आईसीनिया फोटिडा, यूट्रिलस यूजीनिया और पेरियोनेक्स एक्जकेटस प्रमुख हैं। इनके अलावा आईवीआरआई बरेली के वैज्ञानिकों द्वारा देसी जय गोपाल किस्म भी खोजी है।
सबसे ज्यादा आईसीनिया फोटिडा किस्म का केचुआ वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए प्रचलित है। विदेशी किस्म का यह केंचुआ भारत की विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में सरवाइव कर जाता है और अच्छा कंपोस्ट उत्पादन देता है।
कैसे तैयार होती है खाद
केंचुआ खाद तैयार करने के लिए छायादार जगह पर 10 फीट लंबा, 3 फीट चौड़ा और 12 इंच गहरा पक्का सीमेंट का ढांचा तैयार किया जाता है। इसे पशुओं की लड़ाई जैसा बनाया जाता है।
जमीन से थोड़ा उठाकर इसका निर्माण कराना चाहिए। इस ढांचे में गोबर को डालने से पूर्व अभी समतल स्थान पर हल्का पानी डालकर एक-दो दिन कटाई कर ली जाए तो इसमें मौजूद मीथेन गैस उड़ जाती है।
तदुपरांत इस गोबर को लड़ली लूमा बनाए गए पक के ढांचे में डाल देते हैं। नाचे को गोबर से भर कर उसमें 100 -200 केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गोबर को झूठ के पुराने कटों से ढक देते हैं। बेग से ढके गोबर के ढेर पर प्रतिदिन पानी का हल्का छिड़काव करते हैं।
पानी की मात्रा इतनी रखें कि नमी 60% से ज्यादा ना हो। तकरीबन 2 महीने में केंचुए इस गोबर को अपना आहार बनाकर चाय की पत्ती नुमा बना देंगे। इस खाद को 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से खेत में डालने से फसल उत्पादन बढ़ता है।
जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और फसलों में रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ती है। वर्मी कंपोस्ट में गोबर की खाद के मुकाबले 5 गुना नाइट्रोजन, 8 गुना फास्फोरस, 11 गुना पोटाश, 3 गुना मैग्नीशियम तथा अनेक सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद रहते हैं।
खाद के साथ कछुए के अंडे भी जमीन में चले जाते हैं और वह जमीन की मिट्टी को खाकर उसमें चित्र बनाते हैं जो जमीन के अंदर हवा और पानी का संचार आसन करते हैं ।